Wednesday 27 March 2013

विस्फोट

धमाको से नहीं उड़ते
चीथड़े सिर्फ इंसानी जिस्मो के
बल्कि उड़ जाते हैं
परखच्चे
अमन और ईमान के

फिजा में रह जाती है बारूद की महक
बरसों बरस
इंसानी दिमाग मैं बैठे
नफरत के फितूर सी

अब फिर कुछ दिनों
तक इंसानियत
भीख मांगेगी
चौराहों पर
नुक्कड़ की पगली सी ......
(हम शर्मिंदा हैं )
                                                                             -

मृदुला शुक्ला

1 comment:

  1. जी,
    जीतने की नहीं ... हराने की दौड लगी है ... मुहब्बतों का स्थान ताकत ने ले लिया है ... सारे धर्म बेअसर हैं ... यही सब होता रहता है ... आदमी हैवान बनता रहता है ... इंसान शर्मिन्दा होता रहता है ...

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