Tuesday 26 March 2013

रिश्ते

काश!!
रिश्ते सिले जाते
सुई धागे से

आखिरी छोर पर
एक मज़बूत गाँठ
लगा कर

काते जाते
चरखों पर

या फिर लपेट
कर रख लिए जाते
गर्म ऊन के गोलों की तरह
फंदा दर फंदा उतरते
सलाइओं पर

या कि फिर बनते
शहर के बाहर
कताई मिलों में
जिनकी चिमनिया
दूर से
क़ुतुब मीनार में
आग लगने का
भ्रम पैदा करती हैं

जिनके पिछ्वाड़ो
पर रहते रिश्ते बुनने वाले
दिहाड़ी मजदूर
आधे नंगे

तो क्या बदल जाता?
तब भी,
ठन्डे और गर्म
होते रिश्ते
बाजारों में बिकते रिश्ते
ऊँचे दामों पर
तो कभी ठेलों पर
नीलाम होते रिश्ते
कभी सस्ते
तो कभी महंगे होते,
ऊंची दुकानों में
फीके पकवानों से सजते रिश्ते

लेकिन..............
तब भी,
तुम जीते
रेशमी, गुलाबी
धागों से बुना
महकता खूबसूरत
महीन, जहीन मेरा रिश्ता

और मै............
बेतरतीब,अधउघडा
मोटे धागों से बुना,
जिसके पैबन्दो से
भी मै ढांप न पाती,
अपनी मोहब्बत
और तुम्हारी....................

मृदुला शुक्ला

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