दिन भर थकी आंते
बुझी आँखे
चमकाती रही मालिक
के किलो-किलो भर चांदी के बर्तन
और शाम
रुपहले रंग की सुनहली
चमक आँखों से निकल कानो तक फ़ैल गई
जब मेले मैं हरिया ने
दिलाये उसे चांदी से दिखने वाले बिछुए
दिन भर की थकान
हंस हंस कर बिखरती रही
मेले से घर लौटते
हरिया के काँधे पर
-मृदुला शुक्ला
बुझी आँखे
चमकाती रही मालिक
के किलो-किलो भर चांदी के बर्तन
और शाम
रुपहले रंग की सुनहली
चमक आँखों से निकल कानो तक फ़ैल गई
जब मेले मैं हरिया ने
दिलाये उसे चांदी से दिखने वाले बिछुए
दिन भर की थकान
हंस हंस कर बिखरती रही
मेले से घर लौटते
हरिया के काँधे पर
-मृदुला शुक्ला
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