मैं नहीं लिखना चाहती कविता
न गढ़ना चाहती हूँ
ये न तो रास है न रंग
न ही मेरा प्रेमपत्र
ये बाकायदा प्रसवित की जाती मेरे द्वारा
एक सम्पूर्ण प्रसव वेदना के उपरांत
विसंगतियां बीज डाल देती हैं मुझमे
मेरी संवेदना की नाल से जुड़ वो
सोखने लगती ही प्राण रस
अवधि पूरी होने पर अवशम्भावी है
प्रसव का हो जाना
"मेरी संवेदना और विसंगतियों की वैध संतान है मेरी कविता "
-मृदुला शुक्ला
न गढ़ना चाहती हूँ
ये न तो रास है न रंग
न ही मेरा प्रेमपत्र
ये बाकायदा प्रसवित की जाती मेरे द्वारा
एक सम्पूर्ण प्रसव वेदना के उपरांत
विसंगतियां बीज डाल देती हैं मुझमे
मेरी संवेदना की नाल से जुड़ वो
सोखने लगती ही प्राण रस
अवधि पूरी होने पर अवशम्भावी है
प्रसव का हो जाना
"मेरी संवेदना और विसंगतियों की वैध संतान है मेरी कविता "
-मृदुला शुक्ला
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