Monday 22 April 2013

उदासी

बहुत ख़याल रखती है ये उदासी मेरा
दिन भर आस पास रहती है
जिसे छोड़ गए थे
मेरे दायरों में तुम ,
और शायद बोल भी गए होगे
ख़याल रखने को

दिन भर ओढ़ कर रखती हूँ इसे
शाम को आधा बिछा लेती हूँ
और जो बचती है
इसे आँखों से गिरा
चादरों और तकियों
पे सजा लेती हूँ

ये सितारों जो सजे होते हैं तकियों पे मेरे
रात भर जुगनू सा टिमटिमाते हैं

डरती हूँ कहीं लौट करआ जाओ न तुम
मेरी शामों मेरे तकियों
पे सजे तारे समेट लेने को
लगा के मुझे फिर से
गुलाबी रौशनी का नशा
चुपचाप बिन कहे
फिर से चले जाने को
मृदुला शुक्ला

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