सिमटती ज़मीन ने गढ़े घरों के नए नाम
घर सिमटे फ्लैट में
और जिंदगियां बेडरूम हो गयी
जो कभी हुआ करते थे
राजे महराजों के
अलग अलग मौसम और
रानियों के मिजाज़ के हिसाब से
घुरुहू मंगरू तो सो रहते थे
ओसारे में चारपाई डाल
थकान से पस्त
औरत मर्द अगल बगल
नीम अन्धेरा सन्नाटा तोडती
झींगुरो और सियारों
की स्वर लहरिया
एक दुसरे के साथ संगत करती सी
रौशनी से जगमगाते शहर में
नींद की गोलियां खा
अभिनयरत हैं सभी नींद के
चिंहुक चिहुंक
मानो महाराजा हैं किसी मुल्क के
हमला हो सकता है किसी भी वक्त
मृदुला शुक्ला
घर सिमटे फ्लैट में
और जिंदगियां बेडरूम हो गयी
जो कभी हुआ करते थे
राजे महराजों के
अलग अलग मौसम और
रानियों के मिजाज़ के हिसाब से
घुरुहू मंगरू तो सो रहते थे
ओसारे में चारपाई डाल
थकान से पस्त
औरत मर्द अगल बगल
नीम अन्धेरा सन्नाटा तोडती
झींगुरो और सियारों
की स्वर लहरिया
एक दुसरे के साथ संगत करती सी
रौशनी से जगमगाते शहर में
नींद की गोलियां खा
अभिनयरत हैं सभी नींद के
चिंहुक चिहुंक
मानो महाराजा हैं किसी मुल्क के
हमला हो सकता है किसी भी वक्त
मृदुला शुक्ला
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