Friday 24 May 2013

मकान

सिमटती ज़मीन ने गढ़े घरों के नए नाम
घर सिमटे फ्लैट में
और जिंदगियां बेडरूम हो गयी

जो कभी हुआ करते थे
राजे महराजों के
अलग अलग मौसम और
रानियों के मिजाज़ के हिसाब से

घुरुहू मंगरू तो सो रहते थे
ओसारे में चारपाई डाल
थकान से पस्त
औरत मर्द अगल बगल
नीम अन्धेरा सन्नाटा तोडती
झींगुरो और सियारों
की स्वर लहरिया
एक दुसरे के साथ संगत करती सी

रौशनी से जगमगाते शहर में
नींद की गोलियां खा
अभिनयरत हैं सभी नींद के
चिंहुक चिहुंक

मानो महाराजा हैं किसी मुल्क के
हमला हो सकता है किसी भी वक्त
मृदुला शुक्ला

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