बचपन में जब जिद पर अड़े
छूने को चाँद
माँ ने उतार दिया
पूरनमासी का चाँद थाली भर पानी में
चाँद भी न, आता है
चप्पू चलाता खुबसुरत रंगों की पाल डाले
पानियों के रास्त जमीन पर उतरने की
आदत सी है उसे
चाँद को याद रहता है धरती और आकाश के बीच
फैले निर्वात के बारे में
और विज्ञान की कक्षा में पढ़ा ये नियम
निर्वात मैं चलने के लिए
ध्वनि को भी आवश्यकता होती है माध्यम की
जब भूले से कभी प्रेयसिया
मांग कर बैठती हैं चादं की
अपने प्रेयस से किसी कमज़ोर पल मे
वो भी दे जातें हैं ढेर सारा पानी
उनकी आँखों में
आखिर चाँद को पानी के सहारे ही तो उतरना होता ज़मीन पर
-मृदुला शुक्ला
छूने को चाँद
माँ ने उतार दिया
पूरनमासी का चाँद थाली भर पानी में
चाँद भी न, आता है
चप्पू चलाता खुबसुरत रंगों की पाल डाले
पानियों के रास्त जमीन पर उतरने की
आदत सी है उसे
चाँद को याद रहता है धरती और आकाश के बीच
फैले निर्वात के बारे में
और विज्ञान की कक्षा में पढ़ा ये नियम
निर्वात मैं चलने के लिए
ध्वनि को भी आवश्यकता होती है माध्यम की
जब भूले से कभी प्रेयसिया
मांग कर बैठती हैं चादं की
अपने प्रेयस से किसी कमज़ोर पल मे
वो भी दे जातें हैं ढेर सारा पानी
उनकी आँखों में
आखिर चाँद को पानी के सहारे ही तो उतरना होता ज़मीन पर
-मृदुला शुक्ला
:) :) कितनी प्यारी कविताएं ...
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