Sunday 9 June 2013

इच्छाएं

इच्छाओं की मृत्यु पर होता ही मिथ्या रुदन
उनके दत्तक पुत्र नहीं आते आगे
अंतिंम संस्कार को
हरे कल्लेदार बांस नहीं कटते
बंधती नहीं तिखितियां
निर्वाह नहीं होता मुखाग्नि की परम्परा का
तिरोहित नहीं किया जाता तर्पयामि की ध्वनी से
कुशाग्र पर रख काले तिल
शोक समाप्ति के दिन नहीं घुटवाते
इच्छाओं की तरह उग आये बाल

नहीं सुना जाता गरुड़ पुराण आत्मा की मुक्ति हेतु

इच्छाएं न तो मुक्त होती हैं स्वम्, और न करती है हमें
हमारे कंधे ढोते रहते हैं
उनकी बजबजाती लाश आस पास मंडराता रहता है उनका प्रेत
                                                                                                       -मृदुला शुक्ला

4 comments:

  1. humm !! इच्छाएं मर कर भी नहीं मरती ... वो वहीँ रहती हैं की फिर कोई उन्हें जीवित कर दे ...
    बहुत सुन्दर कविता ...

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  2. डिजाइन ... सेटिंग्स ... पोस्ट और टिप्पणियां ... शब्द सत्यापन , पर जाकर शब्द सत्यापन ऑफ कर लें .... कमेन्ट करने में समस्या होती है !!

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  3. Aap acchha likhti hain .. Ise jaari rakhen ...blog niymit likhen ..

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  4. परिकल्पना के माध्यम से आपके साथ यहाँ भी जुड़ना बहुत सुखद प्रतीत हो रहा है ।आपकी लेखनी को सलाम ।

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