इच्छाओं की मृत्यु पर होता ही मिथ्या रुदन
उनके दत्तक पुत्र नहीं आते आगे
अंतिंम संस्कार को
हरे कल्लेदार बांस नहीं कटते
बंधती नहीं तिखितियां
निर्वाह नहीं होता मुखाग्नि की परम्परा का
तिरोहित नहीं किया जाता तर्पयामि की ध्वनी से
कुशाग्र पर रख काले तिल
शोक समाप्ति के दिन नहीं घुटवाते
इच्छाओं की तरह उग आये बाल
नहीं सुना जाता गरुड़ पुराण आत्मा की मुक्ति हेतु
इच्छाएं न तो मुक्त होती हैं स्वम्, और न करती है हमें
हमारे कंधे ढोते रहते हैं
उनकी बजबजाती लाश आस पास मंडराता रहता है उनका प्रेत
-मृदुला शुक्ला
उनके दत्तक पुत्र नहीं आते आगे
अंतिंम संस्कार को
हरे कल्लेदार बांस नहीं कटते
बंधती नहीं तिखितियां
निर्वाह नहीं होता मुखाग्नि की परम्परा का
तिरोहित नहीं किया जाता तर्पयामि की ध्वनी से
कुशाग्र पर रख काले तिल
शोक समाप्ति के दिन नहीं घुटवाते
इच्छाओं की तरह उग आये बाल
नहीं सुना जाता गरुड़ पुराण आत्मा की मुक्ति हेतु
इच्छाएं न तो मुक्त होती हैं स्वम्, और न करती है हमें
हमारे कंधे ढोते रहते हैं
उनकी बजबजाती लाश आस पास मंडराता रहता है उनका प्रेत
-मृदुला शुक्ला
humm !! इच्छाएं मर कर भी नहीं मरती ... वो वहीँ रहती हैं की फिर कोई उन्हें जीवित कर दे ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ...
डिजाइन ... सेटिंग्स ... पोस्ट और टिप्पणियां ... शब्द सत्यापन , पर जाकर शब्द सत्यापन ऑफ कर लें .... कमेन्ट करने में समस्या होती है !!
ReplyDeleteAap acchha likhti hain .. Ise jaari rakhen ...blog niymit likhen ..
ReplyDeleteपरिकल्पना के माध्यम से आपके साथ यहाँ भी जुड़ना बहुत सुखद प्रतीत हो रहा है ।आपकी लेखनी को सलाम ।
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